Principal’s Message


 

शिक्षा मानव जीवन का वह आधार स्तंभ है। जिस पर आसीन होकर व्यक्ति विद्या के उसे शिखर पर पहुंच जाता है ,जहां से कुछ भी दुर्लभ नहीं है, जहां शिक्षा है, वहां शिक्षक है, शिक्षार्थी है | जहां विद्या है, वहां विद्वान है, और विद्यार्थी हैं|  जहां प्रकाश है, वहां गुरु है, वहां शिष्य हैं भारतीय साहित्य इन सब से भरा पड़ा है|  परिणामस्वरूप , मूल्यों की स्थापना व सृजन इसी भारत भूमि पर हुआ है।

ईश्वर की पूजा भी भिन्न-भिन्न स्थानों पर एवं देशों में अलग-अलग प्रकार से अलग-अलग स्वरूपों में होती है, इसलिए वह भी क्षेत्रबद्ध है। राजा भी सत्ता बल से ही अधिकांशतः यह सम्मान पाता है, लेकिन वास्तविक शिक्षक, गुरु एवं विद्वान पूरे विश्व में सम्मान पाते हैं। उनकी शिक्षा मनुष्य के लिए मूल्यों की वाहक है। कहा गया है कि                   

                                                  "नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा।                                         

                                                   शीलं च दुर्लभं तत्र, विनयस्तत्र सुदुर्लभः॥”.

(अर्थात): - "पृथ्वी पर मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ है, उनमें भी विद्या युक्त मनुष्य मिलना और दुर्लभ है, उनमें भी चरित्रवान मनुष्य मिलना दुर्लभ है और उनमें भी विनयी मनुष्य मिलना और दुर्लभ है.!"

शिक्षण सूत्रसम जैविक मूल्यों को दर्शाता हुआ यह श्लोक सरल/सरलतम से कठिन/ कठिनतम रूप की और गमन हेतु प्रेरित करता है। अर्थात कठिन से कठिनतम (सरल से कठिन की ओर) मानव तन की प्राप्ति ----> विद्या ----> शील----> विनय अर्थात विनय/करुणा से रहित मनुष्य, मनुष्य नहीं, हिंसक पशु के सम्मान है। आइये हम मानव रूप एवं स्वरूप को साकार करें और शिक्षा व विद्या को सीढ़ी बनाकर उच्चतम आदर्शो को प्राप्त करें।